गुरुघासी दास बाबा कौन थे। गुरुघासी दास का जन्म 18 दिसंबर 1938 गिरौदपुरी में हुआ था ।

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गुरुघासी दास बाबा की जयंती है, उनका जन्म 18 दिसंबर 1938 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के गिरौदपुरी में हुआ था। वे पृथम

आज गुरुघासी दास बाबा की जयंती है, उनका जन्म 18 दिसंबर 1938 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के गिरौदपुरी में हुआ था। वे पृथम छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को लेकर 1972 में जेल गए थे।  माना जाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को लेकर जेल जाने वाले वे पहले छत्तीसगढिया थे.   

छत्तीसगढ की धरती पर बाबा गु्रू घासीदास जी 18 दिसंबर 1756 से 20 फरवरी 1820 तक  सतनाम मिशन को आगे बढ़ाते रहे. जहाँ 1820 से 1830 तक उनका बौद्धिक क्रान्ति  का व्यापक असर पड़ा.

सतनाम धर्म के प्रणेता संत बाबा गुरु घासीदास की 266वीं जयंती आज को धूमधाम से मनाया जा रहा है । जहाँ इस अवसर पर सतनामी समाज के घर-घर में दीप प्रज्वलित किया जाएगा और शाम को जैतखाम पर सफेद ध्वज फहराएंगे।  

छत्तीसगढ़ के संतो में बाबा गुरु घासीदास का नाम सम्मान से लिया जाता है। इस धरती ने अपने गर्भ से अनेक रत्नों को जन्म दिया है, जिनमें बाबा घासीदास महारत्नों में से एक है। जहाँ बाबा जी सतनामी समाज के प्रणेता बन कर उभरे, इसीलिये गिरौधपुरी में प्रतिवर्ष मार्च में तीन दिनों का मेला लगता है, जो बाबाजी की याद एवं उनके आदशों को पुनःआत्मसात करने के लिये किया जाता है।

घासीदास जी के पिता का नाम महंगुदास तथा माता का नाम अमरौतिन बाई था। बालपन में बालक घासीदास जी को घसिया कहकर पुकारा जाता था। उस समय छत्तीसगढ़ प्रांत में मराठों का शासन था। कहा जाता है की शासन अपने कर्तव्य पथ से भटक कर अराजकता की ओर जा रहे थे। समाज में इसका विरोध हो रहा था, जिसके फलस्वरूप समाज में तेजी से पतन हो रहा था। सामाज में छुआछूत और जात पांत का भेद भाव बढ़ता जा रहा था । तब बाबा घासीदास जी ने समाज में व्याप्त अंधकार को दूर करने का बीड़ा उठाया। बाबाजी ने इसके लिये जगह-जगह लोगों को उच्च, सामाजिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने के लिये संदेश देना प्रारंभ किया।


बाबाजी बचपन से ही साधू प्रकृति के थे। वे साधु संतों के बीच में ही संगत करने का अवसर खोजते रहते। वे जब विवाह योग्य हुये तो इनके पिता ने इनका विवाह सारंगढ़ के पास ग्राम सिरपुर के निवासी अंजोरीदास की पुत्री, सफुरा के साथ तय किया। पश्चात निश्चित तिथि को इनका विवाह, बड़े धूमधाम से सम्पन्न हो गया। बाद में इसी सफुरा को श्रद्धालुजन सफुरा माता के नाम से आदरसूचक संबोधन से पुकारना शुरू कर दिया था। बाबा जी अब अपने गृहस्थ कार्यों में भी ध्यान देने लगे। इसी कार्य को संपन्न करने हेतु पिता द्वारा वे अपने खेत भेजे गये। जहां फसल उगाने के लिये खेत की जुताई करनी थी। तब कहते हैं गुरूघासीदास ने वहां हल की मूठ पकड़े बिना ही सारा खेत जोत दिया था।

एक झोपड़ी में निवासरत गुरुघासीदास को जगन्नाथपुरी की तीर्थयात्रा का अवसर आया था। तब वे अपने भाई के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा पर निकल पड़े। लेकिन कुछ दूर चलने के बाद वे रास्ते से ही वापस लौट आये। और गिरौधपुरी से एक मील दूर के पहाड़ी पर धौंरा (ऑवला) पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या में लीन हो गये। वहीं घासीदास को सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इनको ईश्वर से सीधा संपर्क एवं दर्शन प्राप्त हुये। बाबाजी ने अपने विचारों को अनपढ़ तथा दबे कुचले लोगों के आत्म सम्मान एवं उन्नति के लिये उन्हें सात सूत्रों से बद्ध संदेश प्रदान किया। जो सतनाम पंथ के प्रमुख सात सिद्धांतों के नाम से आज भी जारी हैं। ये सिद्धांत निम्न हैं। (1) सतनाम पर विश्वास रखो। (2) मूर्तिपूजा मत करो। (3) जाति भेद के प्रपंच में न पड़ें (4) मांसाहार मत करो। (5) शराब मत पियो। (6) अपरान्ह में खेत मत जोतो (7) पर स्त्री को माता समझो।

सोहर पद गावत है, दान पुण्य होवत है अपार आनंद मंगल मनाव, सोहर पद गावत है।।

बाबाजी के जन्मोत्सव में उक्त गीत गाकर उत्साहपूर्वक श्रद्धालुगण उन्हें स्मारण करते हैं।  

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