25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में श्रीमती कृष्णा देवी-कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी के पास चार दशक से अधिक समय का संसदीय अनुभव था। वे 1957 से संसद सदस्य रहे हैं। वे 5 वीं, 6 वीं, 7 वीं लोकसभा और फिर उसके बाद 10 वीं, 11 वीं, 12 वीं और 13 वीं लोकसभा में चुनाव जीतकर पहुंचे। इसके अलावा 1962 और 1986 में दो बार वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 2004 में वे पांचवी बार लगातार लखनऊ से चुनाव जीतकर लोक सभा पहुंचे थे। वाजपेयी जी इकलौते नेता हैं जिन्हें चार अलग-अलग राज्यों उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल है।
गौरवशाली कार्यकाल
अभूतपूर्व एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल इतना गौरवशाली रहा कि एक दशक के बाद भी उस कार्यकाल को न सिर्फ याद किया जाता है, बल्कि उस पर अमल भी किया जाता है। इसमें पोखरण परमाणु परीक्षण, आर्थिक नीतियों में दूरदर्शिता आदि शामिल हैं। आधारभूत संरचना के विकास की बड़ी योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नदी जोड़ो योजना, राष्ट्रीय राजमार्ग और स्वर्णिम चतुर्भुज योजनाएं भी इनमें शामिल हैं। बहुत ही कम ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने समाज पर इतना सकारात्मक प्रभाव छोड़ा।
हार नहीं मानूंगा…
स्तुत्य, अटल जी की शिक्षा के दौरान कई साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियां उनके नाम रहीं। उन्होंने राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य के अलावा दैनिक अखबारों जैसे स्वदेश और वीर अर्जुन का संपादन किया। इसके अलावा भी उनकी बहुत सी किताबें प्रकाशित हुईं जिनमें मेरी संसदीय यात्रा-चार भाग में, मेरी इक्यावन कविताएं, संकल्प काल, शक्ति से शांति, अमर बलिदान, कैदी कविराज की कुंडलियां इमरजेंसी के दौरान जेल में लिखी गई कविताओं का संकलन आदि प्रमुख हैं। कवि मन सदैव अटल आज भी जनमन में आलोकित है। कंठहार हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ...
संयुक्त राष्ट्र में गूंजी हिंदी
शुचिता की राजनीति के प्रतिपालक अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में जनसंघ के संस्थापक सदस्य और फिर 1968-1973 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष और 1955-1977 तक जनसंघ संसदीय पार्टी के नेता रहे। वह 1977 से 1980 तक जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य के रूप में और 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष रहे। साथ ही 1980-1984, 1986, 1993-1996 में वे भाजपा संसदीय दल के नेता रहे। ग्यारहवीं लोक सभा के दौरान वह नेता विपक्ष के पद पर रहे। इससे पहले मोरारजी देसाई की सरकार में उन्होंने 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक विदेश मंत्री का पदभार भी संभाला। दौरान पहली बार हिंद की हिंदी गूंजी। कंठ था मां भारती के ऐसे सपूत का जिसकी वाकपटुता और भाषण-कौशल के मुरीद विरोधी खेमे में भी रहे। 4 अक्टूबर 1977 को संयुक्त राष्ट्र के मंच से करीब 43 मिनट बोले। वह दौर शीतयुद्ध के चरम का था। पूरी दुनिया किसी न किसी के पाले में थी। भारत की उस वक्त में गुटनिरपेक्षता की आवाज बुलंद कर रह थे अटल बिहारी वाजपेयी।
दृढ़निश्चय के एक साल
अटल, अटल के 1998-99 के प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दृढ़निश्चय के एक साल के रूप में जाना जाता है। इसी दौरान 1998 के मई महीने में भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था जिन्होंने परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। फरवरी 1999 में पाकिस्तान बस यात्रा ने उपमहाद्वीप की परेशानियों को सुलझाने के लिए एक नए दौर का सूत्रपात किया। इसे चहुंओर प्रशंसा मिली। इस मामले में भारत की ईमानदार कोशिश ने वैश्विक समुदाय में अच्छा प्रभाव छोड़ा। बाद में जब मित्रता का यह रूप धोखे के रूप में कारगिल के तौर पर परिलक्षित हुआ तब भी वाजपेयी जी ने विषम परिस्थितियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने में सफलता हासिल की।
नवरत्न में समाहित
आदर, अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्र के प्रति उनके सेवाओं के मद्देनजर वर्ष 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हे सर्वश्रेष्ठ संसद सदस्य आदि पुरस्कार से नवाजा गया। इससे पहले 1993 में कानपुर विश्वदविद्यालय ने मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि से नवाजा था। 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया। गमगीन 16 अगस्त 2018 को भारत के महारत्न अटल, अनंत के नवरत्न में समाहित हो गए। प्रेरणापुंज मै अटल था, मैं अटल हूं और मैं अटल रहूंगा का मूलमंत्र सदैव अटल हो गया। महामना की जन्म शताब्दी पर विनम्र शब्दांजलि!
(हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार व लेखक, बालाघाट, मप्र)